Thursday, May 26, 2011

himachal trip

मैं अपनी ज़िन्दगी से त्राहिमाम कर रहा था.. हालाँकि आने वाली तस्वीरों में मैं बूढा दिखूंगा, मगर ऐसा है नहीं. अन्दर छुपी ज्वाला को ढूँढने निकला था मैं शायद पर वो मिली नहीं, उधेड़बुन और एक हतोत्साहित आत्मां अभी भी मुझे सताते हैं. प्रस्तुत लेख के सभी पात्र  एवं घटनाएं काल्पनिक नहीं हैं.


              

 मैं एक सीधा साधा इंजीनियरिंग ग्रेजुएट हूँ, भीड़ में चलूँ तो अपना अस्तित्व कभी कभी भूल ही जाता हूँ. अभी समाज को दिखाने लायक न तो व्यक्तित्व है न कमाई. न कोई गर्लफ्रेंड पाली हुई है. जिस दिन कौन्वोकेशन हुआ उस दिन माता पिता भी देखने नहीं आये. कॉलेज के दोस्तों से शायद फिर कभी न मिलूं. क्या कोई दिव्य हस्तक्षेप होने वाला है? परेशान मैंने कानपूर से कटने का फैसला कर किया. 

मैंने हिमाचल में मौसी के घर डेरा डाल कर लेह लद्दाख का मोटरसाइकल भ्रमण का प्लान बनाया. सोचा के वहाँ जाकर ऐसी ही कोई तस्वीर खींच कर रखूँगा अपनी यादों में. साथ देने के लिए मेरा होमी नवनीत भी चल पड़ा. 

                                         राजधानी दिल्ली में हम एक आद दिवस के लिए स्थापित हुए. उस दिन मैंने दिल्ली में डेल कार्नेजी की एक किताब, एक एवियाटर ऐनक और निम्बू पानी खरीदे. तीन घंटे बस टिकेट के काउंटर पर खड़े होने के बाद कलेक्टर बड़े ही मधुर हिमाचली टोन में बोला हमीरपुर के लिए बस एक टिकेट बची है; बाद में पता चला के वो ऊपर वाले माले पर दलाली कर रहा था. नीचे हम आम लोग व्हाट डी फक करते रह गए और वो उल्टा हमें सुना रहा था. फ़ौरन ही लव्ज़ फूट पड़े: सर जी, आप अपने बारातियों का स्वागत पान पराग से ही कीजियेगा. कलेक्टर : WTF
श्री श्री कुलदीप जी महाराज जी 
मैं: हमें भी ऐसा ही लग रहा है सर. 
                                                   कभी कभी जीवन की बुराइयों से हम हर मान जाते हैं. ऐसे समय पर हम मानसिक स्थिरता खो बैठते हैं और पूरी दुनिया को बुरा मानने लग जाते हैं. गाँधी जी ने इस ही समय पर आत्मनिरीक्षण का अनुरोध किया था- वो कहते थे कि इंसानियत एक महासागर है, अगर कुछ बूँद गंदे निकले तो इसका ये मतलब कतई नहीं है कि पूरा महासागर गन्दा है. ऐसी घड़ियों में हमें पूर्वोक्त उपदेश कि परख के लिए एक उद्धारक या हीरो कि ज़रूरत होती है. ऐसा ही एक हीरो हमारे ज़िन्दगी में 
आया.नाम- कुलदीप , पेशा- ऑटो चालक

                   बड़ा ही मस्त बंदा; चर्बी और दिल -दोनों नर्म. सर्वज्ञ कुलदीप जी ने मुझे अपना चेला स्वीकार कर लिया और फ़ौरन मैंने उनके चरणों में डाईव मारी. कुलदीप ने एक हिमाचल प्रदेश  की एक चापू ट्रिप ऑफर की.  मुझे अपना नायक मिल गया था. मेरी ज्ञान यात्रा का श्रीगणेश हो चुका था.

कुलदीप हमें शिमला ले आया और मेरा अतीत मुझे अपने सामने फिर से जागृत दिखाई लगने लगा; हमने बिमला और उसकी जुड़वाँ बहन जुमला को माल रोड पर  दाल खाते हुए देखा, दोनों मोटी हो गयी थीं; मन में दुःख हुआ. बचपन में नटखट लड़के उसके पीछे सीटियाँ बजाया करते थे. अब वो ठाठ भी गये उनके. याद आया वो दिन जब उसने मुझे ठुकराया था. मन में चार पंक्तियाँ आ गयी थीं -










निकाल के उनके दिल  से  हम  महफ़िल  में  आ  बैठे  है,
हमारी मुश्किल यह  है  के  बड़ी  मुश्किल  में  आ  बैठे  है ,
लड़खड़ाने  लगे  है  हम  तेरी  बेवाफ्फई  की  चोट  से ,
लोग  कहते  है  पी  के  सरे  महफ़िल  में  आ  बैठे  है .
कुलदीप ने व्हीली नामक स्टंट दिखाकर मनोरंजन किया 

कुलदीप अपने वाहन के साथ 



 मेरे अतीत से जुड़े कुछ और विचित्र किरदार मिले, पेश करता हूँ:
इस खच्चर का नाम अरविन्द है, बोलता है ट्रांसपोर्ट 
का बिजनेस है. बड़ा हो गया मगर डिंग हांकने वाली आदत गयी नही 

क्लिक करके ज़ूम करें तो पता चलेगा के एक बछड़ा
 मुझे घूर रहा है, वो घर में नुनुआ कहलाता है; खुद
को 'सेक्सी Devil' बतलाता है. आमतौर पर लड़कियां पीछे भागती 
हैं इनके, जब ये उनके दिल चुराकर भाग रहा होता है तब. 



गगनजीत, एक सिगरेट कश के बाद एक डैलौग मारते हैं,
दुःख दर्द की कहानियां सुनते-सुनाते हैं
क्लास ८ में शुशु करते वक्त मैंने इनके गुप्तांग देखे थे
कलर देखकर मुझे ख़ुशी हुई के मैं भी सामान्य भारतीय हूँ
और मेरे पप्पू की त्वचा जली हुई नहीं है 
शिमला में एक साइबर कैफे में मैंने अपने रिजल्ट्स देख लिए और खुश हुआ के आगे खूसट प्रोफेसर्स का मूह नहीं देखना पड़ेगा. अल्लाह कसम मैंने तो ग्रेजुएशन के दिन एक प्रोफ़ेसर के रूम में बम फोड़ने का प्लान भी  बनाया था. मगर पहाड़ो में जाकर मन थोडा शान्त हुआ. हेतु-हेतु-मद-भूत काल में रहते रहते मैंने अपनी मानसिक भांडार को काफी व्यर्थ किया है. दोबारा सोचा तो प्रोफेसर्स पर अब घृणा नहीं आती. मग्गू लोगों से  ईर्ष्या नहीं होती. लोगों की अच्छाइयां देखने का जी करता है. बावजूद इसके, खामियां मेरे अन्दर भरी पड़ी हैं. मैं खुद को एक कायर समझता हूँ, लोगों के डर से मैं अपने रूम से बाहर नहीं निकलता या मेस में अकेले बैठता. शायद मुझे लगता के मैं इनकी दोस्ती के काबिल ही नही हूँ, जो दोस्त बचपन से घनिष्ट रहे हैं, वो भी मुह फेरते हैं, तो ये भी क्यों न अकेला छोड़ देंगे? मेरे ही करेक्टर में कुछ कमी होगी. मुझे दुःख होता है के माता पिता के तमाम बलिदानों की मैं सही तौर से इज्ज़त नहीं कर पता हूँ. मुझे कोई भी चीज़ ऐसी नही मिली है जिससे मैं सही मायने में चाहता हूँ. आसक्ति हो. धन की ही तमन्ना सवार है.
                                                                                          


NIT campus, Hamirpur
Beas river

साथ में मैंने कुछ किताबें रख ली थीं, पहली किताब 'नालंदा क्रोनिकल्स' बड़ी ही चाटू लगी, यह किताब तो ट्रेन के फर्श पर ही पढ़ी थी. जो किताब बड़ी ही रोचक और सम्पूर्ण लगी वो बापू की किताब, My experiments with truth थी. किताब में कुछ वृत्तान्त ऐसे थे जो सीधे दिल तक जाकर एक धड़कन और बढा देते थे. मैंने अब सच बोलने की बहुमूल्यता समझी, और यह किताब ने मुझे अपने धर्म के बारे में पता लगने के लिए उत्तेजित कर   दिया. धौलाधार पर्वत और NIT कैम्पस की कुछ तस्वीरों पेश हैं-


Tummy Returns

McLeodganj में प्रवेश किया तो मानो एक
अलग ही दुनिया दिख रही थी. तिब्बती और गोरे
काफी तादात में दिख रहे थे. मौसम बहुत ही सुहाना हो गया. बुद्ध के दर्शन के लिए 
हमने दलाई लामा के मोनास्ट्री में एंट्री मारी. वहाँ
मेरे दो कॉलेज सीनियर मिल गये. अब इतना कुछ रेंडम हो रहा था तो मैंने सोचा चलो ये भी सही. उन्होंने
बताया के वे भी यूहीं निकल पड़े थे. कोई खबर नही कहाँ जाना है. ये जानकर ख़ुशी हुई. मेरी प्रजाति के जो थे. भागसूनाग नामक एक जगह में एक पूल बनाया 
हुआ है. धौलाधार का पिघला पानी सीधे पुल के एक 
साइड से घुसता है और दुसरे साइड से निकलता है. बिलकुल ठण्डा. मैंने उसमे एक फोडू डाइव मारी.
BhagsuNag
  
mere bro ne mari atti


कपडे बदलते पकड़ा गया 

पोहोंच गया बुद्ध के पास 



रुक गया मैं बुद्ध के मोनास्तेरी में 

कुलदीप बोला अब चलो यहाँ से 



जितनी भी यात्राएं मैंने बस में की, तो ढेर सारे लोगों से मिला. हिमाचल के लोग बड़े ही खूबसूरत और साफदिल प्रतीत हुए. सच कहूँ तो इतने अच्छे लोग मैंने और कहीं नही देखे. ये बात और है के मैंने कानपुर और दिल्ली के लोगों को मापदंड बनाया था

कुलदीप ने कुछ विचारशील quotes सुनाये:
१. समय एक महान शिक्षक है, लेकिन दुर्भाग्य से वह अपने शिष्यों को मार देता है.
२. स्वर्ग सभी जाना चाहते हैं मगर साला कोई मरना ही नहीं चाहता!
३. ज़िन्दगी को कभी गंभीरता से न लें; वैसे भी आज तक कोई जिंदा बच के नही निकला.

कुलदीप literally ऑटो उडाता है 
कुलदीप Auto-cross stunts भी करता है 





कुलदीप इंसान नहीं, वो साक्षात भगवान् का रूप है 

नयूगल Cafe

 विश्वास है कि मैं एक कप चाय और पियूंगा

कुलदीप बोला चलो घूमें नयूगल खड्ड 

अतीत की और बातें भी याद आती चली गयीं!
आठवी क्लास में दिवाकर सर ने मेरा नाम
विशेष बछड़ा पुकारा था. सब मुझपर हस रहे थे
और मैं गुस्से में उनके रंगीले
बाल जलाने की सोच रहा था.

He lives off sycophants 

नवी क्लास में इला प्रसाद मैडम ने मुझे एक प्रश्न पूछा
जिसका मैंने सही उत्तर दिया. उन्होंने सब के सामने मुझे
कसकर थप्पड़ मारा क्यूंकि मैं उनसे बिना पूछे पानी पी रहा था.
उस दिन के पश्चात मैंने उनका नाम 'Bulldog' रखा जो
आज तक स्कुल के छात्रों में प्रचलित है. 
यू डोंट वेस्ट यौर कॉलेज लाइफ यू जर्क इट ऑफ - कुलदीप 


पालमपुर में चाय बागान भरे पड़े हैं 

पालमपुर के चाय बागानों के बीच एक देवदार खड़ा था 


धौलाधार मुझे बुला रहे थे 

बड़ी ही सुन्दर तस्वीर लगी मुझे 

IPL का एक मैच धर्मशाला में अनुभव किया. ब्रेक में प्रीती जिंटा आई और  भीड़ समूह में
टी शर्ट्स फेकने लगी. जिस प्रकार कुत्तों के बीच बोटी फेको, उस ही तरह लोग भी शर्ट पाने को टूट पड़े.
क्लिक करके ज़ूम करें तो चीयर लीडर्स दिखेंगी; गुड़ियों ने खूब प्रदर्शन किया.
आँखें मानो चुंधिया ही सी गयी थीं
.


Narcissistic Kuldeep